हास्य-व्यंग्य >> नदी में खड़ा कवि नदी में खड़ा कविशरद जोशी
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‘नदी में खड़ा कवि’ एक ऐसे महान व्यंग्यकार की कृति है जिसने व्यंग्य को कालजयी सार्थकता प्रदान की है।
शरद जोशी हिन्दी के मूर्धन्य व्यंग्य शिल्पी हैं। उन्हें हिन्दी गद्य के समृद्ध इतिहास में विलक्षण शैलीकार की प्रसिद्धि प्राप्त है। शरद जोशी सामाजिक यथार्थ का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए उसे व्यंग्य-विदग्ध भाषा-शिल्प में अभिव्यंजित करते हैं। उनके व्यंग्यालेखों में शब्द सामाजिक सरोकारों से जुड़कर अर्थ की नवीन आभा से सम्पन्न हो उठते हैं। एक तरह से उनके व्यंग्य बहुस्तरीय भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया पर गहरी दृष्टि रखते हैं और उसमें वैचारिक हस्तक्षेप करते हैं।
‘नदी में खड़ा कवि’ शरद जोशी के बहुचर्चित व्यंग्यालेखों का संग्रह है। इसमें सम्मिलित व्यंग्य यह सिद्ध करते हैं कि लेखक ने पाखंड, कदाचार, विसंगति और अव्यवस्था के विरुद्ध शब्दों का सतर्क प्रयोग किया है। संवेदना की सिकुड़ती धरती और विचारों का बौना होता आसमान शरद जोशी की चिन्ता का केन्द्रीय विषय है। विशेषकर साहित्य-संसार से सन्दर्भित व्यंग्य इस संग्रह का प्राण-तत्व है।
कल्पना के कुलाबे मिलाने के स्थान पर शरद जी जीवन्त यथार्थ के साक्ष्य चुनते हैं, फिर उनमें व्यापक मानवीय सत्य की तलाश करते हैं। इस प्रक्रिया में वे उन संधियों/दुरभिसंधियों की शिनाख्त करते हैं जिनसे छोटे-बड़े अवरोधों का जन्म होता है। उनके वाक्यों से निहितार्थ के जाने कितने आयाम खुलने लगते हैं। ‘यदि महाभारत फिर से लिखा जाए’ में वे लिखते हैं, ‘और आज का लेखक यों भी अकेलेपन का चित्रण करने का इच्छुक है। उसका हीरो अर्जुन नहीं, अश्वत्थामा है, जो कड़वी स्मृतियों का भार ले आज भी जी रहा है, जो युद्ध के नाम से काँपता है।’ ऐसे अनेकानेक सन्दर्भ शरद जोशी के व्यंग्यालेखों को स्मरणीय बनाते हैं।
‘नदी में खड़ा कवि’ एक ऐसे महान व्यंग्यकार की कृति है जिसने व्यंग्य को कालजयी सार्थकता प्रदान की है।
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